दीपों का त्यौहार दीपावली...हिंदू धर्म में रौशनी के इस त्यौहार की खासी महत्ता भी है और मान्यता भी.....माना जाता है कि दीपों के इस त्यौहार पर घर आंगन में दीप जलाकर उजियारा करने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं...और धन धान्य के साथ घर में आती है...जिससे घर में पूरे साल धन वर्षा होती रहती है..सम्पन्नता बनी रहती है।..इस खास मौके पर मां लक्ष्मी को रिझाने और मनाने के लिए,लोग अपनी अपनी तरह से पूजा अर्चना करते हैं...लेकिन इस पूजा अर्चना के दौरान कुछ ऐसा भी होता है..जो शायद बिल्कुल भी नैतिक नहीं होता..ये 'कुछ' है उल्लुओं की बलि...जी हां उल्लुओं की बलि...मेरे ख्याल से आप लोगों में से बहुत ही कम लोगों ने उल्लुओं की बलि के बारे में सुना होगा....लेकिन ये सौ फीसदी सच है कि दीपावली के दिन महालक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए उल्लुओं की बलि दी जाती है...आपको जानकारी होगी कि उल्लू , देवी लक्ष्मी का वाहन माना जाता है..मान्यता है कि उल्लू पर सवार होकर ही महालक्ष्मी घरों में प्रवेश करती है..।.दीपावली पर मा लक्ष्मी को मनाने के लिए तंत्र मंत्रों का खासा इस्तेमाल किया जाता है...इस तंत्र मंत्र में अपने स्वार्थ सुलभ करने के लिए मां लक्ष्मी को मनाने के लिए और बहुत सी दूसरी इच्छाओं की पूर्ति के लिए कुछ लोग उल्लुओं की बलि देने जैसा घृणित कार्य भी करते हैं...उनका मानना है कि ऐसा करने से मा लक्ष्मी प्रसन्न होकर घन घानय् की वर्षा करेंगी।...दीपावली पर ऐसे ही घृणित कार्यों के लिए यूपी से दिल्ली ले जाए जा रहे कई तस्करों को पुलिस ने पकड़ा, जो दीपावली पर उल्लुओ को बलि के लिए दिल्ली ले जा रहे थे...लेकिन मुखबिर की सूचना पर पुलिस ने उल्लूखोर तस्करों को धर दबोचा....खास बात ये है कि दीपावली में उल्लुओं की खासी मांग के चलते एक-एक उल्लू की कीमत लाखों में पहुंच जाती है..यू पी से पकड़े गए उल्लुओं में से एक उल्लू तो पूरे ढाई लाख रुपये था..तो बाकी के एक लाख रुपये से ऊपर के। ये सभी उल्लू ऑन डिमांड लोगों को सप्लाई किए जाते हैं जो मोटी रकम देकर बेजुबान उल्लुओं की बलि चढवाते हैं.... लेकिन मेरा सवाल हर किसी आमोखास से है कि क्या कभी किसी बलि से मा प्रसन्न होती हैं...मां को तो ममतामयी माना जाता है....मां हमेशा अपने बच्चों के कल्याण के लिए तत्पर रहती हैं..ऐसे में क्या किसी बेजुबान प्राणी की बलि से मां को प्रसन्नता होगी...क्या कभी किसी को मारने से कुछ हासिल हो सकता है...कम से कम मेरा मानना है नहीं...लेकिन आज भी आजादी के ६ दशक से ज्यादा बीत जाने के बावजूद हमारी सोंच अंधविश्वास की गुलामी से बाहर नहीं निकल पा रही..आखिर क्यों हममें से ज्यादातर लोग उस सडी गली मानसिकता से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं...मौका है खुद विकसित होने का...और विकसित समाज का हिस्सा बनने का..ऐसे में हम को अविकसित और संकुचित सोंच के दायरे से बाहर निकलना होगा....शायद यहीं से देश के विकास में आ रही बाधाओं का खात्मा होना शुरू हो जाएगा..तो आइये इस दिवाली अपनी सोंच को और बेहतर बनाने के लिए दीप जलाएं....ज्ञान के तेल में अपनी सोंच की बाती को डुबोकर समाज के दीपक में खुद को रौशन करें..शायद ये रौशनी बड़ी दूर तक जाएगी। शुभ दीपावली.