Sunday, December 19, 2010

Tuesday, November 2, 2010

आओ कुछ नए दीप जलाएं

दीपों का त्यौहार दीपावली...हिंदू धर्म में रौशनी के इस त्यौहार की खासी महत्ता भी है और मान्यता भी.....माना जाता है कि दीपों के इस त्यौहार पर घर आंगन में दीप जलाकर उजियारा करने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं...और धन धान्य के साथ घर में आती है...जिससे घर में पूरे साल धन वर्षा होती रहती है..सम्पन्नता बनी रहती है।..इस खास मौके पर मां लक्ष्मी को रिझाने और मनाने के लिए,लोग अपनी अपनी तरह से पूजा अर्चना करते हैं...लेकिन इस पूजा अर्चना के दौरान कुछ ऐसा भी होता है..जो शायद बिल्कुल भी नैतिक नहीं होता..ये 'कुछ' है उल्लुओं की बलि...जी हां उल्लुओं की बलि...मेरे ख्याल से आप लोगों में से बहुत ही कम लोगों ने उल्लुओं की बलि के बारे में सुना होगा....लेकिन ये सौ फीसदी सच है कि दीपावली के दिन महालक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए उल्लुओं की बलि दी जाती है...आपको जानकारी होगी कि उल्लू , देवी लक्ष्मी का वाहन माना जाता है..मान्यता है कि उल्लू पर सवार होकर ही महालक्ष्मी घरों में प्रवेश करती है..।.दीपावली पर मा लक्ष्मी को मनाने के लिए तंत्र मंत्रों का खासा इस्तेमाल किया जाता है...इस तंत्र मंत्र में अपने स्वार्थ सुलभ करने के लिए मां लक्ष्मी को मनाने के लिए और बहुत सी दूसरी इच्छाओं की पूर्ति के लिए कुछ लोग उल्लुओं की बलि देने जैसा घृणित कार्य भी करते हैं...उनका मानना है कि ऐसा करने से मा लक्ष्मी प्रसन्न होकर घन घानय् की वर्षा करेंगी।...दीपावली पर ऐसे ही घृणित कार्यों के लिए यूपी से दिल्ली ले जाए जा रहे कई तस्करों को पुलिस ने पकड़ा, जो दीपावली पर उल्लुओ को बलि के लिए दिल्ली ले जा रहे थे...लेकिन मुखबिर की सूचना पर पुलिस ने उल्लूखोर तस्करों को धर दबोचा....खास बात ये है कि दीपावली में उल्लुओं की खासी मांग के चलते एक-एक उल्लू की कीमत लाखों में पहुंच जाती है..यू पी से पकड़े गए उल्लुओं में से एक उल्लू तो पूरे ढाई लाख रुपये था..तो बाकी के एक लाख रुपये से ऊपर के। ये सभी उल्लू ऑन डिमांड लोगों को सप्लाई किए जाते हैं जो मोटी रकम देकर बेजुबान उल्लुओं की बलि चढवाते हैं.... लेकिन मेरा सवाल हर किसी आमोखास से है कि क्या कभी किसी बलि से मा प्रसन्न होती हैं...मां को तो ममतामयी माना जाता है....मां हमेशा अपने बच्चों के कल्याण के लिए तत्पर रहती हैं..ऐसे में क्या किसी बेजुबान प्राणी की बलि से मां को प्रसन्नता होगी...क्या कभी किसी को मारने से कुछ हासिल हो सकता है...कम से कम मेरा मानना है नहीं...लेकिन आज भी आजादी के ६ दशक से ज्यादा बीत जाने के बावजूद हमारी सोंच अंधविश्वास की गुलामी से बाहर नहीं निकल पा रही..आखिर क्यों हममें से ज्यादातर लोग उस सडी गली मानसिकता से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं...मौका है खुद विकसित होने का...और विकसित समाज का हिस्सा बनने का..ऐसे में हम को अविकसित और संकुचित सोंच के दायरे से बाहर निकलना होगा....शायद यहीं से देश के विकास में आ रही बाधाओं का खात्मा होना शुरू हो जाएगा..तो आइये इस दिवाली अपनी सोंच को और बेहतर बनाने के लिए दीप जलाएं....ज्ञान के तेल में अपनी सोंच की बाती को डुबोकर समाज के दीपक में खुद को रौशन करें..शायद ये रौशनी बड़ी दूर तक जाएगी। शुभ दीपावली.

Monday, May 10, 2010

मैट्रो है या चारो धाम ससुर !



दिल्ली में मेट्रो अब दिल्लीवासियों की आदत बनती जा रही है...या यूं कहें कि दिल्ली की लाइफ लाइन बनने वाली है....या बन गई है तो गलत नहीं होगा। देशभर के कोने कोने में रहने वाले जब दिल्ली आते हैं तो उनके जहन में एक बात जरूर होती है...कि दिल्ली में मेट्रो में जरूर बैठना है...भई आखिर हम भी तो देखें कि मेट्रो चीज क्या है....कुछ ऐसा ही जज्बा लेकर मेरे एक दोस्त के चाचा यूपी के बलरामपुर से दिल्ली आए...हमारे मित्र भी मेरी तरह एक पत्रकार नामक कीड़ा हैं...एक नंबर के वाचाल हैं...निकल पड़े पहली बार दिल्ली आए अपने चाचा को लेकर दिल्ली भ्रमण पर।...शुरू हुआ चाचा का दिल्ली दर्शन...दिल्ली का एक एक किनारा देखकर चाचा की हैरानी सातवें आसमान की सैर पर निकल पड़ी थी...लाल किले से लेकर कुतुब मीनार...और एमसीडी की सबसे ऊची बिÏल्डग से लेकर जामा मस्जिद तक...सबकुछ देख डाला...इस बीच बारी आई चांदनी चौक से मेट्रो के दीदार और उसकी सवारी की...फिर क्या था...चाचा चल दिए मेरे दोस्त के साथ चांदनी चौक मेट्रो स्टेशन...स्टेशन के अंदर जैसे ही चाचा घुसे...देखकर दंग....अंदर की पत्थर लगी दीवारें और खूबसूरत नजारा देखकर चाचा के पैर थम गए...आखिर चाचा ने पूछ ही लिया मेरे दोस्त से....अरे भतीजे इ....कहां लै आयो तुम हमका..अरे इस ससुर रेलवे स्टेशन है कि फाइव स्टार होटल...हियां तो बहुत पैसा लागी...बाप रे बाप हम ना जाय पइबे मेट्रो के भित्तर.....चाचा की हैरानी देखकर मेरा खुराफाती मित्र भी बोल पड़ा...अरे चाचा परेशान काहे हौ...हम हन नाही...हम ले चलबै....तुम काहे परेशान हो...चाचा फिर बोले...लेकिन भइया...हिंया तो हम लुट जइबे...हमरे बस की बात नाही है...मेट्रो मा जाइके....लौट चलो.।..इस पर मेरे महाखुराफाती मित्र ने कहा...चाचा आज चाहे जितना पैसा लाग जाए....हम तुमका मेट्रो की सैर कराय के ही दम लेब...आखिर हम कौन बात के भतीजा । जो चाचा का मेट्रो की सैर ना कराय पायी...इस पर चाचा तपाक से बोल पड़े...बेटा जो तुम आज हमका मेट्रो में सैर कराय दिहो...तो हम धन्य हो जाइब..हम का नाज होय जाइ कि तुम हमार भतीजा हो...भइया बड़े दिन से तमन्ना है.।.कि जब दिल्ली जाबै तो मेट्रो मा जरूर बैठब...बड़ा नाम सुना है ससुरी के..।..फिर क्या था मेरे मित्र ने मेट्रो टिकट विंडो से मेट्रो टोकन खरीदे...उनमें से एक चाचा को पकड़ा दिया...और कहा कि चाचा इ प्लास्टिक का टिकट है...बड़ा कमाल का है...जैसे इ पल्ला यानि दरवाजे के पास कोने पर छुवइहौ ...भन्न से दरवाजा खुल जाइ...और जैसे दरवाजा खुले...जोर से भागेव...नहीं तो पीछेन रहि जइहौ....मेट्रो स्टेशन के अंदर हर बात से हैरान चाचा ने मेट्रो टोकन गेट के पास जैसे ही टोकेन टच किया..गेट खुल गया..फिर क्या था चाचा इतनी जोर से भागे मानो भूत ने दौडा लिया...उसके बाद बारी आई एस्केलेटर यानि चलित सीढ़ियों की...गांव के सीधे साधे चाचा को जब उस पर चलने के लिए मेरे दोस्त ने कहा कि तो चाचा खासे डर गए...चाचा ने कहा..भइया हम तो गिरेन जाइबे...मुंह टूट जाइ..लेकिन जैसे तैसे दोस्त ने चाचा को एस्केलेटर पर चढ़ाया ...उसके बाद तो चाचा के अचरज का ठिकाना ही नहीं रहा...चाचा वाह वाह करने लगे...वाह भइया ..इ तो सार बिल्कुल पुष्पक बिमान होय रहा है....मजा आय गवा....खड़े हो जाव, खुदै पहुंचाय दी ऊपर...चाचा की इस हरकत पर अगल बगल चल रहे लोग मुस्की काट रहे थे...एस्केलेटर से उतरते समय चाचा ने बड़ी जल्दी दिखाई...उसके बाद बारी आई मेट्रो पर बैठने की...अभी तक मेट्रो नहीं आई थी...लेकिन अंदर का नजारा देखकर....चाचा का दिल बाग बाग हो चुका था....चाचा हर चीज को देखकर दोस्त से सवाल करने में जुटे थे...और वो उसी अंदाज में चाचा के सवालों के जवाब दे रहा था। तब तक मेट्रो भी आ गई....मेट्रो के दरवाजे खुले...और भीड़ बाहर की ओर निकली...और बाहर खड़ लोग अंदर की ओर...उसके बाद दरवाजा बंद हो गया..ये नजारा देख चाचा का चेहरा रोमांचित हो गया..चाचा ने कहा...वाह भइया वाह...का गजब चीज बनाइन हैं भगवान...खुदै खुल जात है और खुदै खट्ट से बंद हो जात है...अगर चूक गयो तो बाहरै रहि जाओ...बेटा तुमरी चाची के साथ तो इन्हां नाय आवै वाला है...पता चलै कि उ अंदर रहि गर्इं...और हम बाहर...या हम अंदर और उ बाहर...फिर तो गजबै हो जाई...रोमांच का ये दौर यूं ही जारी था...मेट्रो सुरंग के अंदर चल रही थी...और चाचा ये सबकुछ देखकर हतप्रभ थे..हैरान थे...मेट्रो में हो रही उद्घोषणा सुनकर भी चाचा सकपका गए...अरे सार गजबै है....सबकुछ बोलत है मशीन...कहां पहुंचेव...और जस कहत है दरवाजा खुल जात है....इन सबके बीच मेट्रो राजीव स्टेशन पहुंची जहां से चाचा के साथ मेरा दोस्त बाहर निकला...इस दौरान भी चाचा चौंके चौंके नजर आए...लेकिन उनके चेहरे पर एक अनोखी मुस्कान थी..चाचा मन ही मन प्रसन्न थे...बाहर निकलने के बाद चाचा ने मेरे दोस्त से कहा...कि बेटा मेट्रो मा यात्रा कर ऐसा लगा...मानौ तुम हमका चारो धाम की यात्रा कराए दिहौ....हम तो सार अपने जनम मा मेट्रो मा यात्रा ना कर पाइत...लड़िका हो तो तुमरे जस...जुग जुग जियो बेटा....उधर चाचा की बातों पर मेरे पत्रकार मित्र कुटिल मुसकी काट रहे थे...और मन ही मन सोच रहे थे..वाह रे चाचा...मजा आ गया आपके साथ घूम के...आपने दिल्ली देखी...और मैंने आपको.। लेकिन चाचा को घुमाकर मेरे दोस्त भी खुश नजर आए..दिल्ली से जब चाचा वापस बलराम पुर गए...तो अपने गांव में उन्होंने मेट्रो के गुणों के ऐसे पुलिंदे लोगों के सामने बांधे किए...कि लोग दंग रह गए...वो पुलिंदे हम आपको अपनी इसी कहानी की अगली किश्त में पढ़ने के लिए परोसेंगे...ये सारी कहानी मेरे मित्र ने मेरे घर पर सुनायी थी...जो मुझे अच्छी लगी और मैंने आप लोगों के लिए शब्दों में पिरोने की कोशिश की।

Thursday, March 18, 2010

बीजेपी में नया विद्रोह....


बीजेपी की नई टीम पर तीन महीने तक चुप्पी साधने के बाद नितिन गडकरी ने पदाधिकारियों और समितियों का ऐलान किया तो...अब पार्टी में भूचाल सा आ गया है.....पार्टी अध्यक्ष को अपने इस पहले ही मोर्चे पर जोरदार झटका लगा है::::दो दिन पहले ही बनाई गई उनकी नई ब्रिागेड को लेकर असंतोष के बादल मंडराने लगे हैं..नई टीम को लेकर बिहार से महाराष्ट्र.... और कर्नाटक से उत्तराखंड तक, हर ओर असंतोष दिखाई दे रहा है...पार्टी के कई दिग्गज भी नई टीम के स्वरूप से खासे नाराज हैं...... शाहनवाज हुसैन नई टीम के साथ पार्टी प्रवक्ता बनने को तैयार नहीं हैं.....तो शत्रुघ्न सिन्हा ने इस सवाल पर जमकर अपनी भड़ास निकाली है.... उधर हर्षवर्धन, बीसी खंडूरी के अलावा सीपी ठाकुर और राजीव प्रताप रूड़ी जैसे बड़े और कद्दावर नेता भी..... नई टीम में महत्वपूर्ण लोगों को नजरअंदाज करने से नाराज हैं....शत्रुघ्न सिन्हा ने तो साफ कहा है कि पार्टी में कई वरिष्ठ और योग्य नेता हैं जिन्हें नई टीम में जगह नहीं दी गई....बिहारी बाबू ने कहा कि वो नई टीम से काफी दुखी हैं..इस बीच पता चला है कि ....महाराष्ट्र को प्रमुखता देने की शिकायत दूर करने के लिए बिहार के दो नेताओं राधामोहन सिंह और नंदकिशोर यादव को भी जल्द ही नई टीम में जगह मिलने की उम्मीद है....फिर महाराष्ट्र जैसे राज्य से अट्ठाईस नेता भले ही टीम में हैं....लेकिन गोपीनाथ मुंडे अभी भी अपने समर्थकों के छूट जाने से नाराज हैं...मुंबई से प्रमोद महाजन की बेटी पूनम महाजन को ना लेना भी बीजेपी के केंद्रीय नेताओं को अखरा है........ टीम में रविशंकर प्रसाद को महासचिव के साथ मुख्य प्रवक्ता बनाया जाना भी बहुत से नेताओं को रास नहीं आ रहा...राजीव प्रताप रूढ़ी भी अपने पद से संतुष्ट नहीं हैं..कुल मिलाकर नई टीम को इसी रूप में चलाना गडकरी के लिए विद्रोहियों की टीम चलाने जैसा है...वो भी ऐसे समय में जब पार्टी देश के कई प्रदेशों में लगातार अपना जनाधार खोती जा रही है:::पार्टी के सुप्रीम सदस्यों की ये नाराजगी गडकरी को भारी पड़ सकती है.....खबर ये भी है कि गडकरी ने अपने कई वरिष्ठ सहयोगियों से बिना राय मशविरा किए ही अपनी नई नीट का ऐलान कर डाला...ऐसे में अगर गडकरी अपनी नई टीम से उपजे असंतोष को दूर करना चाहते हैं...तो उन्हें टीम में फेरबदल करने पड़ सकते हैं...ऐसे में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के साथ साथ पार्टी कार्यकर्ताओं की भावनाओं और सदस्यों की क्षमता के मुताबिक नई ब्रिागेड में साथियों को शामिल करना चाहिए...और अगर ऐसा नहीं हुआ..तो एक केंद्रीय पार्टी को अपने ही पार्टी के विद्वेश रूपी कीड़े खोखला कर सकते हैं...जो बीजेपी के लिए एक नई मुसीबत बन सकती है...इसलिए गडकरी को सोच समझकर और अपने व्यक्तित्व के अनुरूप निर्णय लेने पड़ेंगे..तभी एक बड़ी पार्टी की नाव ठीक से खे पाएंगे।

Saturday, February 6, 2010

आतंकियों का खौफनाक रोजगार-स्टोन पेÏल्टग

पत्थरों के जरिए गुस्से का इजहार....कश्मीर घाटी में काफी समय से अपना विरोध जताने का ये तरीका कुछ ज्यादा ही आम हो चला है....जी हां मामला किसी भी स्तर का हो...विरोध जताने के लिए पत्थर चलाना बेहद जरूरी हो गया है घाटी में...जानते हैं क्यों...इसलिए नहीं कि ये इन पत्थरों के जरिए अपने गुस्से का इजहार करना चाहते हैं....बल्कि इसलिए क्योंकि इनके हाथों फेंका गया एक एक पत्थर इनकी कमाई में इजाफा करेगा....इन्हें अगली बार इस तरह का रोजगार दिलाने में और ज्यादा मददगार साबित होगा....ये फेंका गया पत्थर....ऐसे में उपद्रव के दौरान फेंका गया हर पत्थर बेसकीमती कहा जा सकता है...हर पत्थर उपद्रवियों की जेब गरम कर रहा है....और इसीलिए आप पिछले डेढ़ साल की घटनाओं पर नजर डालें तो ज्यादातर विरोध प्रदर्शनों के दौरान स्टोन पेÏल्टग यानि पत्थर फेंकना आम बात रही है...लेकिन क्यों क्या बिना पत्थर फेंके विरोध प्रदर्शन सफल नहीं हो सकता...सफल हो सकता है लेकिन बस कुछ लोगों के लिए....लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं उपद्रवियों की भीड़ में जिनका सिर्फ और सिर्फ एक ही मकसद होता है....ज्यादा से ज्यादा स्टोन पेÏल्टग....वो जितने ज्यादा पत्थर सुरक्षाबलों पुलिसकर्मियों पर चलाएंगे...उसी के मुताबिक उन्हे मेहनताना दिया जाएगा.......जी हां, आप सोच रहे होंगे...हम ये क्या कह रहे हैं।...लेकिन ये बिल्कुल सच है...कश्मीर घाटी में बहुत से लोगों के लिए विरोध प्रदर्शनों के दौरान पत्थर फेंकना रोजगार बन चुका है..जितना ज्यादा मेहनताना...उतने ज्यादा पत्थर,ज्यादा लोगों को घायल करने के लिए और ज्यादा पारिश्रमिक...बात हैरान कर देने वाली जरूर है....लेकिन है हकीकत से लबरेज..इन दिनों घाटी के बेरोजगार युवकों के लिए ये एक बड़ा और चोखा धंधा बना हुआ है...यानि हींग लगे ना फिटकरी और रंग भी चोखा.. ..युवाओं को ये घिनौना रोजगार मुहैया करा रहे हैं कुछ आतंकी संगठन...जिसमें लश्कर ए तैयबा और हिजबुल मुजाहिद्दीन भी शामिल हैं...अपने घिनौने और खौफनाक मकसद को अंजाम देने के लिए अब दहशतपसंद लोगों ने इसे धंधा बना दिया है....हर साल आतंकी संगठन लाखों रुपये इस पत्थर फेंकने के धंधे पर खर्च करते हैं...ये सनसनीखेज खुलासा किया है जम्मू कश्मीर की पुलिस ने ..पुलिस ने ऐसे ही पत्थर फेंकने वाले गिरोह के सरगना को गिरफ्तार किया है...उसके पास से बड़ी संख्या में जाली दस्तावेज अहम जगहों के नक्शे और नकली पहचान पत्र भी बरामद किए गए हैं। पकड़े गए आरोपित के मुताबिक आतंकी संगठनों ने पथराव के काम को बेहतर तरीके से अंजाम देने के लिए अलग अलग ग्रुप बना रखे हैं....इन समूहों को उनके काम के हिसाब से मोटी रकम दी जाती है...यानि काम जितना बेहतर और असरदार होगा....मेहनताना भी उतना शानदार होगा...ये समूह प्रदर्शनों के दौरान स्थानीय बेरोजगारों को आगे कर उनसे पथराव कराते हैं...और उसके बाद तयशुदा समय पर उनका भुगतान किया जाता है।..इस सनसनीखेज खुलासे के बाद सरकार इन पत्थरबाजों पर लगाम कसने की तैयारी कर रही है।....लेकिन सवाल ये उठता है कि आखिर इतने लंबे समय से ये घिनौना खेल घाटी में खेला जा रहा है...और सरकार और खुफिया तंत्र को इसकी भनक इतनी देर से क्यों लगी...क्यों दहशतगर्द अपनी गंदी हरकतों की सीढ़ियां चढ़ने में सफल हो जाते हैं....इस पर गहन सोच विचार की जरूरत है....दहशत गर्दों के इस तरह के नापाक मंसूबों से अब देश के हर नागरिक को सचेत रहने की जरूरत है....क्यों कि हमारे दुश्मन और दहशतपंसद चंद लोग ये नहीं चाहते कि देश में अमन और चैन कायम रह सके...और इसी लिए अमन और चैन में खलल डालने के लिए वो नित नई धूर्त साजिशें रचते रहते हैं....स्टोन पेÏल्टग भी उन धूर्तों की एक बानगी भर है....इसीलिए जरूरी है हर भारतवासी को सचेत होने की ...कि देश की अस्मिता के साथ खिलवाड़ करने वालों के साथ समझौता नहीं करेंगे...बल्कि देश की ओर उठने वाली हर गलत निगाह को नेस्तनाबूत कर दिया जाएगा...इसे पढ़कर अगर आपके मन में भी कुछ खयाल पनप रहे हैं तो यहां बोलिए....

Friday, January 1, 2010

नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं

सभी ब्लॉगर्स को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं.....ई·ार करे....नए साल पर आप लोग और ज्यादा ब्लगियाएं...और अपनी बात और बेहतर ढंग से लोगों तक पहुंचाए....अरविंद शुक्ल

तिवारी जी ये क्या हुआ?


एनडी तिवारी....एक लंबी राजनीतिक पारी का अनुभव रखने वाला एक शख्स....जिसके सार्वजनिक जीवन पर जिंदगी के आखिरी पड़ाव में दाग लग गया....एक ऐसा दाग जो भले ही सही ना हो ....उसके निशान छुटाने से भी अब नहीं छूटेंगे....लेकिन अफसोस होता है....स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर गांधी जी के साथ का अनुभव और उसके बाद देश के विकास में योगदान देने वाले की ऐसी विदाई....परेशान करती है....ये अलग बात है कि नारायण दत्त तिवारी आज भी इस दंश को अपने राजनीतिक जीवन से विदाई नहीं मानते..सत्तासी साल की ये राजनीतिक शख्सियत अभी भी अपनी पारी खेलने के प्रति आ·ास्त है....उन्हें लगता है....कि इससे उनके लंबे और अनुभव जीवन पर कोई आंच नहीं आएगी...हैदराबाद में अपना इस्तीफा देने के बाद वो देहरादून पहुंचे.... जहां उनके समर्थक फूल मालाएं लेकर उनके सम्मान में खड़े थे...चारो तरफ से एक ही नारा हवाओं में था...कि तिवारी तुम संघर्ष करो हम तुमहारे साथ हैं....वहीं कुछ महिलाओं और संगठनों ने एयरपोर्ट के बाहर उनके खिलाफ नारे भी लगाए...और उनका पुतला भी फूंका...इन दोनों ही नजारों की जानकारी तिवारी जी को थी....लेकिन एयरपोर्ट से बाहर निकलते समय उनके चेहरे पर अपने ऊपर लगाए गए आरापों की शिकन और तल्खियां नजर नहीं आ रही थीं...ना ही ऐसा लग रहा था कि उन्हें कोई पछतावा है...देहरादून में उन्होंने इस पूरे मामले को अपने खिलाफ साजिश बताया..और इसके पीछे कई तरह की बातें बताई....उन्होंने कहा कि अच्छा ही हुआ....इस उम्र में आंध्रा की परेशानियां मुझसे झेली नहीं जातीं...वहां अगल राज्यों को लेकर कई आंदोलन चल रहे हैं...और उनमें से फिलहाल सबसे प्रभावी तेलंगाना मुद्दे पर मुझपर दबाव बनाने की कोशिश की जा रही थी....इसके अलावा लोग राजभवन से कई तरह के निजी फायदे भी चाहते थे....जिसके लिए मुझपर लगातार दबाव बनाया जा रहा था...लेकिन राजभवन की अपनी गरिमा है...उसके साथ मैं खिलवाड़ नहीं कर सकता...और इसीलिए मैं वहां से खुद ही आना चाहता था....इस्तीफा देने के सवाल पर तिवारी जी ने कहा कि उन्होंने सेक्स स्कैंडल के आने से पहले ही केंद्र को अपना त्यागपत्र दे दिया था...सवाल ये उठता है कि अगर ऐसा था...तो तिवारी जी वहां से पहले ही क्यों नहीं आ गए...सेक्स स्कैंडल में नाम उछलने के बाद ही वहां से वापस क्यों आए...इतना बड़ा आरोप लगने के सवाल से भी तिवारी जी खुद को बेहतर तरीके से बचाते नजर आए...उन्होंने कहा कि लोगों ने तो गांधी जी जैसी महान हस्ती को भी नहीं छोड़ा..हम तो कुछ भी नहीं हैं। क्या तिवारी जी की बातें सही हैं...या फिर आरोपों में सच्चाई है....ये तो तिवारी जी से बेहतर कोई भी नहीं जानता...लेकिन सवाल ये भी है कि बार बार तिवारी जी पर एक ही तरह के आरोपों क्यों लगते रहे हैं...ऐसा उनके समकक्ष और उनके राजनीतिक कद के बराबर की दूसरी शख्सियत के साथ देखने को क्यों नहीं मिलता...इसका जवाब भी तिवारी जी से बेहतर भला कौन दे पाएगा। काश उनके गरिमामयी सफर के साथ आजकल का ये मामला ना जुड़ा होता...तो शायद बेहतर ही होता....क्योंकि ऐसे बोझ रूपी आरोप ...चाहे वो सही हों या फिर गलत...जब तक जिंदगी रहती है....सालते ही रहते हैं....और तिवारी जी को चुभाए गए ये आरोप रुपी कांटे सिर्फ उन्हें ही नहीं उनके प्रशंसकों को हमेशा चुभते रहेंगे....और उनके लंबे अनुभवी सामाजिक जीवन पर सवाल उठाती रहेगी।इस पर अगर आप कुछ बोलना चाहें....तो जरूर बोलिए....