Monday, May 10, 2010

मैट्रो है या चारो धाम ससुर !



दिल्ली में मेट्रो अब दिल्लीवासियों की आदत बनती जा रही है...या यूं कहें कि दिल्ली की लाइफ लाइन बनने वाली है....या बन गई है तो गलत नहीं होगा। देशभर के कोने कोने में रहने वाले जब दिल्ली आते हैं तो उनके जहन में एक बात जरूर होती है...कि दिल्ली में मेट्रो में जरूर बैठना है...भई आखिर हम भी तो देखें कि मेट्रो चीज क्या है....कुछ ऐसा ही जज्बा लेकर मेरे एक दोस्त के चाचा यूपी के बलरामपुर से दिल्ली आए...हमारे मित्र भी मेरी तरह एक पत्रकार नामक कीड़ा हैं...एक नंबर के वाचाल हैं...निकल पड़े पहली बार दिल्ली आए अपने चाचा को लेकर दिल्ली भ्रमण पर।...शुरू हुआ चाचा का दिल्ली दर्शन...दिल्ली का एक एक किनारा देखकर चाचा की हैरानी सातवें आसमान की सैर पर निकल पड़ी थी...लाल किले से लेकर कुतुब मीनार...और एमसीडी की सबसे ऊची बिÏल्डग से लेकर जामा मस्जिद तक...सबकुछ देख डाला...इस बीच बारी आई चांदनी चौक से मेट्रो के दीदार और उसकी सवारी की...फिर क्या था...चाचा चल दिए मेरे दोस्त के साथ चांदनी चौक मेट्रो स्टेशन...स्टेशन के अंदर जैसे ही चाचा घुसे...देखकर दंग....अंदर की पत्थर लगी दीवारें और खूबसूरत नजारा देखकर चाचा के पैर थम गए...आखिर चाचा ने पूछ ही लिया मेरे दोस्त से....अरे भतीजे इ....कहां लै आयो तुम हमका..अरे इस ससुर रेलवे स्टेशन है कि फाइव स्टार होटल...हियां तो बहुत पैसा लागी...बाप रे बाप हम ना जाय पइबे मेट्रो के भित्तर.....चाचा की हैरानी देखकर मेरा खुराफाती मित्र भी बोल पड़ा...अरे चाचा परेशान काहे हौ...हम हन नाही...हम ले चलबै....तुम काहे परेशान हो...चाचा फिर बोले...लेकिन भइया...हिंया तो हम लुट जइबे...हमरे बस की बात नाही है...मेट्रो मा जाइके....लौट चलो.।..इस पर मेरे महाखुराफाती मित्र ने कहा...चाचा आज चाहे जितना पैसा लाग जाए....हम तुमका मेट्रो की सैर कराय के ही दम लेब...आखिर हम कौन बात के भतीजा । जो चाचा का मेट्रो की सैर ना कराय पायी...इस पर चाचा तपाक से बोल पड़े...बेटा जो तुम आज हमका मेट्रो में सैर कराय दिहो...तो हम धन्य हो जाइब..हम का नाज होय जाइ कि तुम हमार भतीजा हो...भइया बड़े दिन से तमन्ना है.।.कि जब दिल्ली जाबै तो मेट्रो मा जरूर बैठब...बड़ा नाम सुना है ससुरी के..।..फिर क्या था मेरे मित्र ने मेट्रो टिकट विंडो से मेट्रो टोकन खरीदे...उनमें से एक चाचा को पकड़ा दिया...और कहा कि चाचा इ प्लास्टिक का टिकट है...बड़ा कमाल का है...जैसे इ पल्ला यानि दरवाजे के पास कोने पर छुवइहौ ...भन्न से दरवाजा खुल जाइ...और जैसे दरवाजा खुले...जोर से भागेव...नहीं तो पीछेन रहि जइहौ....मेट्रो स्टेशन के अंदर हर बात से हैरान चाचा ने मेट्रो टोकन गेट के पास जैसे ही टोकेन टच किया..गेट खुल गया..फिर क्या था चाचा इतनी जोर से भागे मानो भूत ने दौडा लिया...उसके बाद बारी आई एस्केलेटर यानि चलित सीढ़ियों की...गांव के सीधे साधे चाचा को जब उस पर चलने के लिए मेरे दोस्त ने कहा कि तो चाचा खासे डर गए...चाचा ने कहा..भइया हम तो गिरेन जाइबे...मुंह टूट जाइ..लेकिन जैसे तैसे दोस्त ने चाचा को एस्केलेटर पर चढ़ाया ...उसके बाद तो चाचा के अचरज का ठिकाना ही नहीं रहा...चाचा वाह वाह करने लगे...वाह भइया ..इ तो सार बिल्कुल पुष्पक बिमान होय रहा है....मजा आय गवा....खड़े हो जाव, खुदै पहुंचाय दी ऊपर...चाचा की इस हरकत पर अगल बगल चल रहे लोग मुस्की काट रहे थे...एस्केलेटर से उतरते समय चाचा ने बड़ी जल्दी दिखाई...उसके बाद बारी आई मेट्रो पर बैठने की...अभी तक मेट्रो नहीं आई थी...लेकिन अंदर का नजारा देखकर....चाचा का दिल बाग बाग हो चुका था....चाचा हर चीज को देखकर दोस्त से सवाल करने में जुटे थे...और वो उसी अंदाज में चाचा के सवालों के जवाब दे रहा था। तब तक मेट्रो भी आ गई....मेट्रो के दरवाजे खुले...और भीड़ बाहर की ओर निकली...और बाहर खड़ लोग अंदर की ओर...उसके बाद दरवाजा बंद हो गया..ये नजारा देख चाचा का चेहरा रोमांचित हो गया..चाचा ने कहा...वाह भइया वाह...का गजब चीज बनाइन हैं भगवान...खुदै खुल जात है और खुदै खट्ट से बंद हो जात है...अगर चूक गयो तो बाहरै रहि जाओ...बेटा तुमरी चाची के साथ तो इन्हां नाय आवै वाला है...पता चलै कि उ अंदर रहि गर्इं...और हम बाहर...या हम अंदर और उ बाहर...फिर तो गजबै हो जाई...रोमांच का ये दौर यूं ही जारी था...मेट्रो सुरंग के अंदर चल रही थी...और चाचा ये सबकुछ देखकर हतप्रभ थे..हैरान थे...मेट्रो में हो रही उद्घोषणा सुनकर भी चाचा सकपका गए...अरे सार गजबै है....सबकुछ बोलत है मशीन...कहां पहुंचेव...और जस कहत है दरवाजा खुल जात है....इन सबके बीच मेट्रो राजीव स्टेशन पहुंची जहां से चाचा के साथ मेरा दोस्त बाहर निकला...इस दौरान भी चाचा चौंके चौंके नजर आए...लेकिन उनके चेहरे पर एक अनोखी मुस्कान थी..चाचा मन ही मन प्रसन्न थे...बाहर निकलने के बाद चाचा ने मेरे दोस्त से कहा...कि बेटा मेट्रो मा यात्रा कर ऐसा लगा...मानौ तुम हमका चारो धाम की यात्रा कराए दिहौ....हम तो सार अपने जनम मा मेट्रो मा यात्रा ना कर पाइत...लड़िका हो तो तुमरे जस...जुग जुग जियो बेटा....उधर चाचा की बातों पर मेरे पत्रकार मित्र कुटिल मुसकी काट रहे थे...और मन ही मन सोच रहे थे..वाह रे चाचा...मजा आ गया आपके साथ घूम के...आपने दिल्ली देखी...और मैंने आपको.। लेकिन चाचा को घुमाकर मेरे दोस्त भी खुश नजर आए..दिल्ली से जब चाचा वापस बलराम पुर गए...तो अपने गांव में उन्होंने मेट्रो के गुणों के ऐसे पुलिंदे लोगों के सामने बांधे किए...कि लोग दंग रह गए...वो पुलिंदे हम आपको अपनी इसी कहानी की अगली किश्त में पढ़ने के लिए परोसेंगे...ये सारी कहानी मेरे मित्र ने मेरे घर पर सुनायी थी...जो मुझे अच्छी लगी और मैंने आप लोगों के लिए शब्दों में पिरोने की कोशिश की।

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