Tuesday, December 15, 2009

एक तीर से दो निशाने !

तेलंगाना मसले पर हामी भरने के बाद केंद्र सरकार की पेशानी पर बल पड़ने लगे थे....लेकिन तेलंगाना समर्थकों का नया बयान केंद्र सरकार के लिए मरहम बनकर आया है....जो परमानेंट ना सही....लेकिन फिलहाल सरकार को राहत पहुंचाने काम तो करेगा ही...तेलंगाना समर्थकों यानि टीआरएस के नेताओं ने कहा है कि वो दो हजार चौदह तक तेलंगाना नाम से अलग राज्य के लिए इंतजार कर सकते हैं....टीआरएस नेताओं का तर्क है कि चूंकि कांग्रेस ने अलग तेलंगाना राज्य पर सहमति जता दी है...इसलिए टीआरएस अब इस मसले को और ज्यादा तूल नहीं देना चाहती ....लेकिन क्यों...इस बीच ऐसा क्या हो गया....जो ये मसला फिलहाल शांत होता नजर आ रहा है....कहीं इसमें टीआरएस की कोई सोची समझी गणित तो नहीं है....जिसकी बिसात पर वो केंद्र सरकार को बिठाने के मूड में है...तेलंगाना समर्थकों ने ये कहकर फिलहाल आंदोलन टाल दिया है..कि जब केंद्र सरकार ने सहमति दे दी है...तो फिर अब उत्पात मचाने से क्या फायदा...लेकिन अगर आप देखिए....तो लगता है....कि हामी भरवाने के बाद की गई इस घोषणा से अब टीआरएस एक तरफ तो केंद्र पर अपना दबाव बरकरार रखना चाहती है....तो दूसरी ओर खुद आंध्र प्रदेश में अपनी स्थिति और मजबूत करने की मोहलत लेना चाहती है....क्यों कि टीआरएस को मालूम है कि जिस समय आंदोलनों का दौर चल रहा था...तेलंगाना का विरोध करने वालों की संख्या भी कम नहीं थी....जिनके जहन में अभी भी तेलंगाना के खिलाफ आग भड़की हुई है....कहीं दो हजार चौदह की बात कह कर टीआरएस अपना कुनबा और मजबूत करने की कवायद तो नहीं करने जा रही ..क्योंकि मौजूदा समय में भी उसके पास प्रदेश में बहुत ज्यादा सीटें तो हैं नहीं...और टीआरएस ये बात अच्छी तरह जानती है कि सीटों की मजबूती ही तेलंगाना के समर्थन को और बल दिला सकती है....जो फिलहाल उसके पास नहीं है..दूसरी ओर दो हजार चौदह में विधानसभा चुनाव हैं....सो फिलहाल वो होमवर्क करने के मूड में है ये कहा जाए...तो शायद गलत नहीं होगा....क्योंकि एक बात तो शायद आप भी अच्छी तरह जानते हैं जो कि इतिहासकरों ने दिल खोलकर कही है....कि प्रशासकों को लेकर जनता की याददाश्त बेहद कमजोर होती है...कहने का तात्पर्य ये है कि क्या पता अगर टीआरएस दो हजार चौदह में ज्यादा सीटें ले आए.....जिसके बाद तेलंगाना की मांग को और पुख्ता ढंग से रखा जा सकता है...एक बात और, जो सामने है कि टीआरएस के नेता इस बात को भलीभांति जानते है कि केंद्र के लिए तेलंगाना राज्य बनाना इतना आसान नहीं है....क्यों कि उसका अनुसरण करते कई और लोग मुंह खोले दूसरे नए राज्यों की मांग के साथ तैयार हैं....तेलंगाना के बाद उनका स्वर चरम पर पहुंच जाएगा...जो सरकार के लिए नासूर जैसा साबित हो सकता है।.....ऐसे में फिलहाल जहां तेलंगाना समर्थक खुद होमवर्क के मूड में हैं....तो दूसरी ओर वो केंद्र सरकार को भी फिलहाल चिंतामुक्त कर आगे के लिए उनको तैयार करना चाहते हैं...अब आगे क्या होगा...कांग्रेस दो हजार चौदह में इस पर क्या करेगी...ये तो तब की तब देखी जाएगी...लेकिन दूसरी ओर टीआरएस ने केंद्र को नए राज्यों की मांग कर रहे लोगों को फिलहाल खामोश करने की चाबी जरूर थमा दी है।

Tuesday, December 8, 2009

दो सिर वाला लड़का !

अभी दो तीन दिन पहले की बात है..मुझे एक स्पेशल पैकेज लिखने के लिए कहा गया...स्लग था... दो सिर वाला लड़का....आप के लिए भी थोड़ा बहुत तो अजीबोगरीब होगा ये लड़का....ये लड़का बिहार के दरभंगा में लगे एक मेले में आया था...जहां उसे देखने के लिए लोगों की भारी भीड़ जुट रही थी....खास बात ये है ुइसके लिए लोगों को टिकट लेना पड़ रहा था...मतलब की लड़का नुमाइश का सामान बनकर वहां आया था...उसे देखने वाले लोग भी उसे देखकर अपनी हैरानी प्रकट कर रहे थे..जहां लोगों उसे देखकर हैरानी हो रही थी...वहीं तरस भी आ रहा था. कि वो बेचारा कैसे रहता होगा..कैसे उसकी दिनचर्या कटती होगी...लोग आते और देखकर चले जाते...इस बात की खबर हमारे पत्रकार भाइयों को लगी...उन्होंने उसको कहानी बनाकर चैनल और अखबार में परोसने की ठानी...सो पहुंच गए कैमरा और कागज, कलम लेकर...दो सिर वाले अजूबे लड़के से बात की और उसको मेले में लाने वाले से भी बात की...हो गई स्टोरी तैयार..फिर भेज दी गई अपने अपने ऑफिसेज में...चैनल और अखबार के दफ्तरों में...चैनलों ने इस स्टोरी को बखूबी परोसने की कोशिश की....हेडर चलाए...शर्मसार हुई मानवता/ दो सिर वाला लड़का देखो/नुमाइश का सामान बना लड़का/क्या सही है नुमाइश?/ कुदरत का अनोखा खेल...कुछ इसी तरह के हेडर के जरिए स्टोरी को व्यूवर्स के सामने परोसा गया...अधिकारियों से बात-चीत दिखाई गई....कुल मिलाकर लुब्बोलुवाब ये रहा कि....मीडिया में इस खबर को इन नजरिए से पेश किया गया कि जिस लड़के को सहानुभूति मिलनी चाहिए...जिसे सही इलाज की जरूरत है....देखभाल की जरूरत है...उसे तिजारत का सामान बनाकर नुमाइश में बैठा दिया गया है....और मैं भी और शायद आप भी इस बात को गलत ही मानेंगे...कि उस लड़के साथ गलत हो रहा है....इस बारे में अधिकारियों ने चैनलों और अखबार पर खबर आने के बाद जांच का आ·ाासन दे दिया...कि जो भी कुछ हो रहा है वो गलत है...।ये तो था पहला पहलू...उसके बाद दूसरा पहलू देखिए....जो चैनलों और अखबार के दफ्तरों में मुझे देखने को मिला...अच्छी रही स्टोरी....खूब बिकी....लोगों ने खूब देखा...जैसी बातें हो रही थीं दो सिर वाले उस लड़के की स्टोरी के बारे में...बस हो गया अपना काम पूरा....अब मैं जो कहना चाहता हूं उस पर आता हूं....अपने खुद इस स्टोरी को लिखा था...और ऑन एयर कराया था...जिसके बाद मेरे मन में कई तरह के सवाल सामने आ रहे थे...कि क्या बस हमारा फर्ज पूरा हो गया...जिस लड़के की स्टोरी हमने दिखाई....उसके बारे में हमारे कर्तव्य क्या पूरे हो गए...जो शख्स उस बच्चे को नुमाइश में लाया था...हमने स्टोरी में उसकी खूब खिंचाई की थी...कि उसने गलत किया ये सही नहीं है...उसने मानवता को शर्मसार किया....किसी की मजबूरी को पैसे कमाने का जरिया बना दिया...लेकिन आप जानते हैं उस शख्स ने उस बच्चे को एक अनाथ आश्रम से गोद लिया था..क्योंकि दो सिर हाने की वजह से उसके अपने मां बाप ही उसे छोड़कर चले गए थे...मान लीजिए वो उसी अनाथ आत्रम में ही रह जाता ...तो तब क्या होता....क्या कोई आम इंसान, बेऔलाद दंपति उस बच्चे को अपने घर ले जाता....शायद नहीं....फिर क्या करता वो बच्चा..मीडिया को लोगों की पीड़ा को सामने लाने और उसे दूर करने वाला ....की नजर से लोग देखते हैं...लेकिन क्या हकीकत में हर जगह मीडिया ऐसा करती है...अब जब मामला मीडिया में पहुंच गया...तब से लेकर आज तक उस दो सिर वाले लड़के के बारे में मीडिया ने क्या किया....बस खबर चलाकर इतिश्री कर ली...अब कोई पूछने वाला भी नहीं है उस बच्चे को....कि कहां गया वो...अगर उसके मालिक ने उसे इस काम से अलग कर भी दिया....तो उसका पेट कौन भरेगा....मीडिया में आई खबरें...या हमारी आपकी संवेदनाएं....हो सकता है इस मामले में मै थोडा भावुक हो गया हूं...लेकिन क्या ये सच नहीं है...मेले से हटाए जाने के बाद उस शख्स को अपनी जीविका का दूसरा साधन भी ढूंढना पड़ेगा...जो कि बहुत आसान नहीं होगा..ऐसे में जब वो लड़का उसके काम का नहीं है...तो वो भला कब तक उसकी देखभाल कर पाएगा इस दुनियां में... ऐसी दुनिया में जहां लोग अपने ही मां बाप को बुढौती में छोड़ने से नहीं हिचकिचाते...मैं कहना ये चाहता हूं..कि जब मुद्दा उठाया गया हो....तो उसे अंजाम तक पहुंचाने की कोशिश भी हम लोगों को करनी चाहिए...क्यों ताकि मीडिया सिर्फ खबरों को उछालने का एक माध्यम ना कहा जाए....बल्कि लोगों की जिंदगी में खुशहाली लाने का जरिया भी माना जाए....इस नजरिए कि पहल हमें ही करनी होगी...शायद हमारी आपकी कोशिशों और पहल से इस तरह की जिंदगी जीने वालों की दुनिया रौशन हो जाए