Friday, November 13, 2009

बाल दिवस की हकीकत.....

कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने कभी लिखा था.....वह तोड़ती पत्थर, इलाहाबाद के पथ पर। आज इस बच्चे को देख कर हम कह सकते हैं.....वह तोड़ता पत्थर, पटियाला के पथ पर। इलाहाबाद हो, चाहे पटियाला....आज बाल मजदूरी की दर बढ़ती ही जा रही है। किसी को कूड़ा इकट्ठा करना पड़ता है....कोई दो वक्त की रोटी के लिए अपने जीवन को बदरंग कर दूसरों के लिए रंगीन गुब्बारे लिए घूमता है। बड़ी संख्या में बच्चे जूठे बर्तन धोने के लिए भी मजबूर हैं। क्या चाय की दुकान, क्या होटल और क्या घर...सभी जगह बचपन काम के बोझ के तले दबा नजर आ रहा है। ऐसे में जब हम बाल दिवस मना रहे हैं......कैसे उम्मीद करें कि देश के सभी बच्चे....अपने चाचा नेहरू के सपने को पूरा कर सकेंगे। सरकारी और स्वयंसेवी संगठन लाखों रूपये खर्चकर बाल मजदूरी रोकने और बच्चों के जीवन को बेहतर बनाने का दावा भले ही करते हों...लेकिन हकीकत सड़कों पर साफ देखी जा सकती है। बाल मजदूरी को रोकने और इसके खिलाफ सख्त कार्रवाई को लेकर जिम्मेदार अधिकारियों के पास जाओ तो वो इस बारे में बनाए गए सरकारी कानून के बारे में तफशील से जानकारी देने के लिए सीना चौड़ा कर तैयार हो जाते हैं....लेकिन जब बात उनके विभाग की ओर से उठाए गए ठोस कदमों के बारे में करें...तो कहीं बात कहीं और अटकाने की कोशिश में जुटे नजर आते हैं....कमोबेश यही नजारा हर जगह देखने को मिल जाता है ....।हमारे बीच से बच्चों के चाचा नेहरू को गये...... पैंतालीस साल हो गये हैं। फिर भी आज भी लाखों बच्चों के सपने अधूरे हैं और जिनके पूरे होने के कोई आसार भी नजर नहीं आ रहे....ऐसे में कोई भरोसा करना भी चाहे कि देश में सभी बच्चों को समान विकास के लिए सुविधाएं मिलेंगी....तो भला कैसे...क्या उम्मीद की कोई किरण कहीं नजर आ रही है...जवाब होगा....फिलहाल तो ओझल है.....हां ये जरूर है कि इनमें से बहुत से सपने सरकारी फाइलों में जरूर पूरे किए जा चुके र्हैं। सबकुछ जानते हैं हम लेकिन फिर भी ना कुछ करना चाहते हैं और ना ही आवाज उठाना चाहते हैं...क्या यही हमारी असलियत है...जरा आप भी खुद से पूछ कर देखिए...हकीकत से दो चार हो जाएंगे।...उसके बावजूद अगर बोलने का माद्दा रखते हैं..तो यहां बोलिए....

1 comment:

  1. भाई अरविंद ब्लाग शुरू करने के लिए बधाई....बाल दिवस का लेख पढ़ा, अच्छा लगा.....चलो बाल दिवस के बहाने ही मीडिया की हकीकत तो सामने आई....हमेशा की तरह ही इस बार भी बाल दिवस के मौके पर मीडिया ने अपने तय कार्यक्रमों के बीच ऐसे प्रोग्राम को फिलर के तौर पर भरा... सब देखते हैं, सोचते हैं लेकिन कोई भी ठोह पहल अब तक देखने को नहीं मिल रही, चाहे वो सरकारी हो या निजी....आजादी के इतने सालों के बीत जाने के बावजूद भी हमारे अपने नन्हें मुन्ने राजू, टिंकू हर होटलों और ढ़ाबे पर काम करते हुए देखे जा सकते हैं....शर्म आती है
    शेष सब ठीक है...अजय

    ReplyDelete