Wednesday, November 4, 2009

युवा पत्रकारों की story

आजकल कई ऐसे प्रोफेशन हैं...जिनमें जाने के लिए हमारे युवा खासे लालायित रहते हैं....इनमें से एक पत्रकारिता भी है...जिसकी चमक दमक....बरबस ही युवाओं को अपनी ओर आकर्षित करती है...लड़का हो या फिर लड़की...दोनों की ही संख्या बराबर है.....यहां आने वालों में....और इसी लालच में वो मीडिया के संस्थान में दाखिला लेते हैं....जैसा कि वो मानते हैं कि पत्रकारिता का डिप्लोमा या फिर डिग्री हासिल कर वो स्टार एंकर, रिपोर्टर या फिर चैनल में कोई खासमखास बन जाएंगे...इस नई पौध की ऐसी इच्छा को भांपकर...कमाने वाले भी तैयार हो गए हैं...उन्होंने जगह जगह कुकुरमुत्तों की तरह अपने मीडिया के इंस्टीट¬ूट खोल दिए हैं....जिनमें वो भारी भरकम फीस लेकर ऐसे छात्र छात्राओं को अपने यहां दाखिला दे देते हैं....खास बात ये है कि ऐसे मीडिया इंस्टीट¬ूट में दाखिले के समय परीक्षा में इंटरव्यू के नाम सिर्फ खानापूर्ति की जाती है...क्योंकि इनमें से बहुत से छात्र-छात्राएं ऐसे होते हैं जिन्हे मीडिया के एम के अलावा उसके बारे में और कोई जानकारी नहीं होती...मैं ये नहीं कह रहा कि सभी ऐसे होते हैं लेकिन कुछ फीसदी तो ऐसे ही होते हैं...और ये बात वो छात्र-छात्राएं भी जानते हैं...मां बाप की गाढ़ी कमाई की भारी भरकम रकम देकर भावी पत्रकार बनने की तमन्ना लिए छात्र छात्राएं दाखिला ले लेते हैं...इस उम्मीद पर कि...बस कोर्स खत्म नहीं हुआ कि चैनल या फिर अखबार के अंदर नौकरी....फिर तो अधिकारियों के बीच उठना बैठना....लोगों में रौब गांठना...कि मैं पत्रकार हूं...शुरू हो जाएगा...और हां एक बेहतर सेलरी भी इंतजार कर रही होगी...ये सब सोचकर चल पड़ते हैं पत्रकार बनने की डगर पर....शुरू होता है कोर्स...एक ऐसा कोर्स...जिसका चैनल और अखबार के अंदर की वास्तविकता से कोई सरोकार नहीं होता..सिर्फ कुछ कहे सुने सिंद्धांतों को जुबान के जरिए प्रशिक्षार्थियों के जहन में कामय कर दिया जाता है...और साथ ही एक बात और सिखाई जाती है...कि उनके इंस्टीट¬ूट से निकलते ही...एक दमदार सेलरी पैकेज उनका इंतजार करती मिलेगी...कोर्स खत्म होता है...और फिर शुरू होता है...इंटर्नशिप का दौर....लेकिन ये क्या...अब चौकने के दिन शुरू होते हैं...उनका प्रिय संस्थान तो इंटर्नशिप दिलाने में ही आनाकानी करने लगा..कलतक तो ये शान से ...कहते थे कि आप लोगों को टॉप बैंड में इंटर्नशिप कराई जाएगी..लेकिन अब पता लगा कि सारे दावे फुसफुसे थे...ये संस्थान से निकलने के बाद छात्र-छात्राओं के लिए माफ कीजिएगा युवा पत्रकारों के सामने पहला सच था...खैर ये तो था संस्थान का ड्रामा...अब आगे चलते हैं मीडिया हाउसेस.के पास..अखबार के ऑफिस और चैनलों की चकाचौंध की ओर...किसी तरह रोते गाते अखबार या फिर चैनल में इंटर्नशिप करने पहुंचते हैं...खूम दम लगाकर जान लगाकर इंटर्नशिप में सबको खुदको दिखाने और साबित करने की कोशिश करते हैं...लेकिन ये क्या ...कोई देखने को तैयार ही नहीं..सभी एक जैसा बोलते हैं...बहुत जूते घिसे हैं...तब यहां पहुंचे हैं....तब सवाल कौंधता है...कि क्या हमें भी जूते घिसने पढ़ेंगे...फिर सोचते हैं कि ऐसा थोड़े ही है...मुझमें काबिलियत है....और इसी के दम पर नौकरी भी मिलेगी....इंटर्नशिप खत्म हो गई....लोगों को खूब रिझाया इस दौरान्र.... लेकिन किसी को पसंद नहीं आए...फिर भी निराश नहीं हुए ...सोचा रिज्यूम सबमिट करते हैं...और नौकरी ढूंढते हैं...और शुरू हो गया..जूते घिसने का दौर....एक महीना, दो महीना...महीने पर महीने बीतते गए....इस आस में कि नौकरी मिल जाएगी....चैनलों और अखबार के रिशेप्सन पर रिज्यूम जमा कर कर के दम फूलने लगा....लेकिन नौकरी फिर भी नहीं....उधर घर वालों के सब्रा का बांध भी टूटने लगा...सवाल किए जाने लगे...आखिर क्या कर रहे हो..लेकिन ये युवा पत्रकार क्या जवाब देंगे....वो तो खुद अपने सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश कर रहे होते हैं...ऐसे में घर वालों के सवालों का जवाब कैसे देंगे...फिर किसी ने सलाह दी....कि जुगाड़ लगाओ...अगर चैनल या अखबार में काम करने वाले किसी शख्स से जुगाड़ लग जाए तो नौकरी मिल जाएगी...एक नई आशा के साथ फिर नौकरी ढूंढने की नई पारी खेलने के लिए तैयार हो जाते हैं....फिर शुरू होता है चैनल और अखबारों के दफ्तरों तक जाने का सिलसिला...किसी के एडिटर से बात की ...ता किसी चैनल के स्टार रिपोर्टर और एंकर से...सबने थोड़ा रुकने और सब्रा रखने की बात कही...इस आ·ाासन थके हारे घर लौटते मन को कुछ सुकून देते हुए सो जाते....सवेरे से यही सिलसिला फिर शुरू होता...लेकिन ये सिलसिला कई दिनों से हटकर महीनों पर आ चुका है..लेकिन नौकरी है...कि कोर्स करने के बाद अब और दूर लगने लगी....मीडिया में नौकरी की सच्चाई पता लग चुकी थी...लेकिन अब तो बहुत देर हो चुकी है...क्योंकि रिश्तेदारों तक को ये बता चुके हैं कि फलां चैनल में नौकरी करने लगे हैं..ये झूठ तब बोला था..जब चैनल में इंटर्नशिप कर रहे थे...सोचा था कि यहां नहीं पर कहीं तो नौकरी मिलेगी...लेकिन अब ये भरम टूट चुका है...और मैं और मेरे जैसे ना जाने कितने पत्रकार बनने से पहले ही...पत्रकार बनने की सच्चाई से बखूबी वाकिफ हो चुके हैं...शेष अगली कड़ी में। बोलते रहिए......

7 comments:

  1. लिखते रहें }
    शुभकामनाएं ।
    साहित्य के लिए मेरे ब्लोग पर पधारें

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  2. हिंदी ब्लॉग लेखन के लिए स्वागत और शुभकामनायें
    कृपया अन्य ब्लॉगों पर भी जाएँ और अपने सुन्दर
    विचारों से अवगत कराएँ

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  3. मीडिया की लाइन पर बात न करें तो ही अच्छा.....काहे कि जितना अंदर जाएंगे गंदगी बढ़ती ही जाएगी.

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  4. ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है...!!
    --
    शुभेच्छु

    प्रबल प्रताप सिंह

    कानपुर - 208005
    उत्तर प्रदेश, भारत

    मो. नं. - + 91 9451020135

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  5. thanks for highlighting the real face of media...

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