Wednesday, November 18, 2009

जलवायु परिवर्तन पर सकारात्मक रवैये की जरूरत



दुनिया का वातावरण ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन से बुरी तरह प्रभावित हो रहा है....अगर समय रहते सभी इस गंभीर खतरे को लेकर ना चेते तो इसका सीधा खामियाजा सबसे पहले समुद्र तटीय इलाकों को उठाना पड़ेगा...वजह...ओजोन परत में छेद अगर और बढ़ा तो उन इलाकों में गर्मी बढ़ेगी...जहां सूर्य की रौशन बिना किसी रोकटोक के यानि ओजोन परत से बिना छने सीधे धरातल तक पहुंचेगी...जिसका तापमान दुनिया के बाकी के क्षेत्रों से ज्यादा होगा..नतीजतन वहां का जनजीवन तो प्रभावित होगा ही..साथ ही पूरी दुनिया इससे प्रभावित होगी...इस दिशा में कोपेनहेगेन में भारत के पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश की प्रतिबद्धता वास्तव में सराहनीय है...जिन्होंने काफी लंबे समय के बाद भारत की ओर से ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती करने की बात कही...उन्होंने कहा कि हालांकि भारत ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन करने वाले देशों की सूची में पांचवे नंबर पर है...फिर भी उसे स्वैच्छिक कटौती जैसे कदम सत्रह साल पहले ही उठा लेने चाहिए थे...उन्होंने कहा कि हम इस में कटौती के लिए तैयार हैं...लेकिन हम विकसित देशों के मुकाबले प्रति व्यक्ति के आधार पर उत्सर्जन में कटौती करेंगे...प्रदूषण के स्तर को कम करने के लिए भी कानून बनाया जाएगा...और जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए भी कठोर कानून बनाए जाएंगे...इसके अलावा आर्थिक विकास को इन गैसों के उत्सर्जन से जोड़ा जाएगा ...लेकिन ऐसी प्रतिबद्धता कई देश पहले ही दिखा चुके हैं...और हकीकत में ये मुहिम आज तक परवान नहीं चढ़ पाई है...ऐसे में जरूरत है सभी देशों को गंभीरता से सोचने और त्वरित निर्णय लेने की...ताकि दुनिया को ओजोन परत के क्षय से होने वाले संभावित खतरे से बचाया जा सके..उसको बचाने के लिए सही दिशा में कदम उठाए जा सकें...मौजूदा समय में भारत में प्रति व्यक्ति ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन 1.2 टन है...जबकि अमेरिका और रूस जैसे देशों में ये आंकड़ा 20 से 22 टन है। जो अगले कई वर्षों में और बढ़ेगा...ऐसे में इस पर तुरंत सोचने की और अमलीजामा पहनाने की जरूरत है।

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