Saturday, November 14, 2009

बीस का योद्धा.

क्रिकेट की दुनिया में रिकॉड्र्स को अपना गुलाम बनाने वाले मास्टर ब्लास्टर के कदमों पर हर युवा चलना चाहता है. मगर क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर जिस तरह से उम्मीदों के इस दबाव पर खरे उतरें हैं... वो शायद हर किसी के बूते की बात नहीं. तभी तो कहते हैं कि सचिन आज भी वैसे हैं जैसे कल थे. महज पंद्रह साल की उम्र में देश की देसी लीग रणजी ट्रॉफी से अपना सफर शुरु करने वाले इस महान बल्लेबाज ने शतक जड़कर क्रिकेट के रणनीतिकारों को अपना परिचय दिया. देवधार और दिलीप ट्रॉफी में भी शतक से आगाज करने वाले सच्चू ने फिर भारतीय टीम में दस्तक दे दी. इसके बाद रनों की गंगा ऐसी बही कि आज सभी यही कह रहे हैं कि सोलह साल के सच्चू और छत्तीस साल के मास्टर ब्लास्टर के कद की कोई हद नहीं लेकिन जमीन से जुड़ाव बीस साल पुराना ही नजर आता है. पंद्रह नवंबर उन्नीस सौ नवासी में पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान के खिलाफ जब मास्टर ब्लास्टर ने चौका जड़कर अपने इंटरनेश्नल क्रिकेट करियर का आगाज किया तो किसी के जेहन में ये नहीं था कि साल दो हजार में नौ में भी ये मराठा नॉट आउट पारी खेलता नजर आएगा... हिन्दुस्तान में बीस साल में सात प्रधानमंत्री बदले जा चुके हैं लेकिन रनों के एवरेस्ट पर सवार मास्टर ब्लास्टर का कोई विकल्प अभी तक तैयार नहीं हुआ. कहते हैं ना.... भगवान बदलते नहीं... और क्रिकेट का भगवान भी इसी फलसफे की एक बानगी है......हमें नाज है अपने हीरो पर .....जिसने हिंदुस्तान में क्रिकेट की परिभाषा को बदल कर रख दिया...या यूं कहें कि जिसकी बदौलत आज क्रिकेट हिंदुस्तान में खेला नहीं जाता....बल्कि पूजा जाता है...

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